Digital Copyright Laws and Their Impact on Innovation
Agnimitra Trivedi
Department Of Law, South Asian
University, New Delhi
agnimitratrivedi@gmail.com
Abstract
Digital innovation and the digital environment are greatly influenced by digital copyright rules. Copyright law has had to change in tandem with the quick evolution of technology in order to meet the challenges presented by the digital age. These concerns include digital piracy, granting access to copyrighted works, and the effects of new technologies on creative expression. The impact of digital copyright rules on innovation is examined in this study report. It examines how copyright law has changed historically in tandem with technological
developments and examines the arguments and tactics used by rightsholders now to keep control over digital content. The necessity of striking a balance between the public’s interest in information and educational resources and the protection of creators’ rights is also discussed in the article.
The goal of the article is to provide light on how digital copyright rules affect the rate and direction of innovation by a careful examination of court rulings, legislative actions, and academic literature. It will go over the difficulties legislators and other stakeholders have in updating copyright laws to reflect the realities of the modern digital world, as well as any possible effects these modifications may have on the larger innovation ecosystem.
The research paper’s conclusions will add to the current conversation about the relationship between intellectual property rights, technological advancement, and the public benefit. Through a comprehensive comprehension of the intricate relationships between digital copyright laws and innovation, stakeholders and policymakers may collaborate to create a more flexible and even handed regulatory environment that promotes innovation, information exchange, and ongoing technical progress.
Keywords: Access to knowledge, creativity, and innovation are all dependent on digital copyright.
Achieving a balance between producers’ and users’ rights is essential given the potential and
difficulties present in the digital age.
AI and Legal Ethics in Intellectual Property Laws: Challenges and Considerations
Tanu Sharma
Department of Law
Guru Ghasidas Vishwavidyalaya,
Bilaspur
tanurup9@gmail.com
Abstract
The fast-paced growth of artificial intelligence (AI) technologies is changing the landscape of intellectual property (IP) law which is giving rise to numerous legal and ethical issues. The use of AI in content generation, patenting, and IP litigation has come faster than the law is able to adapt, requiring changes in the definitions of authorship, ownership, and even liability. This paper
discusses the fusion of AI with IP law, focusing on the phenomena of AI-assisted inventions, self enforcing copyrights, and automated trademark registrations. Key challenges include defining AI-generated authorship, addressing patentability concerns, and ensuring fairness in AI-driven IP enforcement. Ethical considerations such as bias in AI decision-making, transparency in
enforcement mechanisms, and moral responsibility for AI-generated violations are also examined. The research highlights the limitations of existing IP laws in regulating AI and evaluates international approaches to AI and IP governance across major jurisdictions. Proposed reforms emphasize the need for AI-specific legal frameworks, ethical AI principles, and global cooperation to harmonize AI, law, and ethics. Recommendations include balancing AI innovation with IP protection, implementing transparent AI decision-making processes, and establishing regulatory oversight for ethical AI governance.
By tackling these legal and ethical issues, policymakers and legal professionals can develop a
flexible and equitable intellectual property system that encourages innovation while protecting
the rights of human creators. The research highlights the need for proactive regulation to secure
a balanced and ethical future for artificial intelligence. in intellectual property law.
Keywords: Artificial Intelligence, Intellectual Property Law, AI Ethics, Copyright Protection,
AI Governance
समकालीन कला और सिनेमा पर हिंदू धर्म का प्रभाव
Dr. Prashant Verma
Department Of Philosophy, Delhi
University
prashantverma2105@gmail.com
आमुख
हिंदू धर्म, जो हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति और समाज का एक अभिन्न हिस्सा रहा है, आज भी विभिन्न कलात्मक अभिव्यक्तियों और सिनेमा पर गहरा प्रभाव डालता है। धर्म और कला का संबंध प्राचीन काल से ही देखा जाता रहा है, जहाँ मूर्तिकला, चित्रकला, नृत्य, संगीत और साहित्य में हिंदू मिथकों, प्रतीकों और धार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया है। समकालीन कला और सिनेमा के माध्यम से यह प्रभाव और भी व्यापक रूप से देखा जा सकता है, जहाँ हिंदू धर्म के तत्व आधुनिक संदर्भों में पुनः व्याख्यायित किए जा रहे हैं।
भारतीय सिनेमा, विशेष रूप से बॉलीवुड और क्षेत्रीय सिनेमा, हिंदू धार्मिक कथाओं, मूल्यों और प्रतीकों को अपने कथानक, संवाद और दृश्यात्मक प्रस्तुतियों में शामिल करता आया है। रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों पर आधारित फिल्में और धारावाहिक न केवल धार्मिक आस्था को सशक्त बनाते हैं, बल्कि उन्हें आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक भी बनाते हैं। समकालीन फिल्मों में भी हिंदू धर्म के तत्व, जैसे कर्म, धर्म, पुनर्जन्म और आध्यात्मिकता, कहानी के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखे जा सकते हैं।
इसी तरह, आधुनिक कला जगत में भी हिंदू प्रतीकवाद का उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है। समकालीन चित्रकार, मूर्तिकार और डिजिटल कलाकार हिंदू देवी-देवताओं, मंदिरों की वास्तुकला, धार्मिक अनुष्ठानों और पौराणिक कथाओं को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। यह कला केवल धार्मिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक विमर्श और वैश्विक आध्यात्मिकता को भी व्यक्त करने का माध्यम बन रही है।
यह शोध हिंदू धर्म के समकालीन कला और सिनेमा पर प्रभाव को गहराई से समझने का प्रयास करेगा। यह अध्ययन इस बात की पड़ताल करेगा कि किस प्रकार धार्मिक तत्वों का प्रयोग आधुनिक कलाकारों और फिल्म निर्माताओं द्वारा किया जाता है, और कैसे ये तत्व समाज की धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक प्रवाह को प्रभावित करते हैं।
संकेत शब्द : संस्कृति, हिंदू मिथकों, व्याख्यायित, कथानक, महाकाव्यों पर आधारित फिल्में और धारावाहिक, प्रासंगिक, सशक्त, हिंदू प्रतीकवाद, धार्मिक तत्वों, धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक प्रवाह।
“शैक्षणिक संस्थानों में सूचना का अधिकार का प्रभाव: एक अध्ययन”
Aditi Prakash
Department Of Journalism And
Mass Communication, Guru
Ghasidas University
आमुख
शिक्षा किसी भी समाज के विकास की आधारशिला होती है, और शैक्षणिक संस्थानों की पारदर्शिता व उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना एक सशक्त लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, नागरिकों को सरकारी विभागों और सार्वजनिक संस्थानों से सूचना प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम शैक्षणिक संस्थानों में सुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।इस शोध अध्ययन का उद्देश्य सूचना का अधिकार अधिनियम के शैक्षणिक संस्थानों पर प्रभाव का विश्लेषण करना है। यह अध्ययन जांच करेगा कि किस प्रकार आरटीआई (RTI) के माध्यम से छात्रों, अभिभावकों और अन्य हितधारकों को शिक्षा संबंधी सूचनाएँ प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही, अध्ययन उन व्यावहारिक चुनौतियों और समस्याओं को भी उजागर करेगा, जो सूचना के अधिकार के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
यह शोध विभिन्न विश्वविद्यालयों, सरकारी एवं निजी शैक्षणिक संस्थानों में सूचना प्रवाह, निर्णय लेने की प्रक्रिया तथा आरटीआई अधिनियम के प्रभाव की पड़ताल करेगा। अध्ययन के निष्कर्ष शैक्षणिक क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत सुधारों की दिशा में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति और विकास का मूल आधार है। शैक्षणिक संस्थान न केवल ज्ञान का प्रसार करते हैं, बल्कि समाज के नैतिक, सामाजिक और आर्थिक ढाँचे को मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि शिक्षा का उद्देश्य सही ढंग से पूरा हो सके। सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI) अधिनियम, 2005, भारत में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम नागरिकों को सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे शासन प्रक्रिया में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलती है।
शैक्षणिक संस्थानों में सूचना का अधिकार का प्रभाव एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि यह संस्थान समाज के भविष्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाते हैं। RTI के माध्यम से छात्र, अभिभावक, शिक्षक और अन्य हितधारक शैक्षणिक संस्थानों के कामकाज, नीतियों, वित्तीय प्रबंधन और निर्णय प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इससे संस्थानों में पारदर्शिता बढ़ती है और उनकी कार्यप्रणाली में सुधार होता है। हालांकि, इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि सूचना के दुरुपयोग की संभावना, संस्थानों पर अतिरिक्त प्रशासनिक बोझ, और गोपनीयता से जुड़े मुद्दे।
इस शोध का उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों पर सूचना का अधिकार के प्रभाव का गहन अध्ययन करना है। यह अध्ययन इस बात की जाँच करेगा कि कैसे RTI ने शैक्षणिक संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दिया है, साथ ही इसके कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और समस्याओं का भी विश्लेषण करेगा। इस शोध के माध्यम से शैक्षणिक संस्थानों में RTI के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को समझने का प्रयास किया जाएगा, ताकि भविष्य में इसके बेहतर क्रियान्वयन के लिए सुझाव दिए जा सकें। इस प्रकार, यह शोध न केवल शैक्षणिक संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व को रेखांकित करेगा, बल्कि RTI के प्रभावी उपयोग के लिए एक मार्गदर्शिका भी प्रदान करेगा। यह अध्ययन शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और विकास के लिए नीतिगत निर्णयों में मददगार साबित हो सकता है।
संकेत शब्द: आधारशिला, हितधारकों, प्रभाव, कार्यप्रणाली, दुरुपयोग, गोपनीयता, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, विश्लेषण, सकारात्मक और नकारात्मक।
भारतीय फिल्म उद्योग में कॉपीराइट उल्लंघन और कानूनी समाधान
Rama Kant Pathak
Teacher PGT, Shiksha Niketan School, Jamshedpur Jharkhand
आमुख
भारतीय फिल्म उद्योग, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, विश्व का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है। हर साल यहाँ हजारों फिल्में बनती हैं, लेकिन इसके साथ ही कॉपीराइट उल्लंघन की समस्या भी लगातार बढ़ रही है। यदि कोई व्यक्ति या संस्था बिना अनुमति के इसका उपयोग करती है, तो यह कॉपीराइट उल्लंघन माना जाता है। फिल्म उद्योग में यह समस्या अक्सर फिल्मों की स्क्रिप्ट, संगीत, या यहाँ तक कि पूरी फिल्मों की नकल करने के रूप में सामने आती है। डिजिटल युग में फिल्मों की पायरेसी, अवैध डाउनलोडिंग, और बिना अनुमति के सामग्री का उपयोग बड़ी चुनौती बन चुका है। यह न केवल फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को आर्थिक नुकसान पहुँचाता है, बल्कि उनकी बौद्धिक संपदा के अधिकारों का भी हनन करता है। भारतीय फिल्म उद्योग में कॉपीराइट उल्लंघन एक गंभीर समस्या है, जो फिल्म निर्माताओं, संगीतकारों, लेखकों और अन्य रचनाकारों के अधिकारों को प्रभावित करती है। इन उल्लंघनों से न केवल रचनाकारों को आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि उनकी रचनात्मकता और प्रेरणा को भी ठेस पहुँचती है।
भारत में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत फिल्मों, संगीत, पटकथा और अन्य सृजनात्मक कार्यों को कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है। इस अधिनियम में 2012 में संशोधन कर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी कॉपीराइट संरक्षण को मजबूत किया गया। साथ ही, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत भी अवैध स्ट्रीमिंग और डिजिटल चोरी पर रोक लगाने के लिए प्रावधान हैं। इस अधिनियम के तहत, कॉपीराइट धारकों को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है। वे अदालत में मुकदमा दायर कर सकते हैं और उल्लंघन को रोकने के लिए निषेधाज्ञा और हर्जाने की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा, सरकार ने कॉपीराइट उल्लंघन को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें ऑनलाइन पायरेसी को रोकने के लिए सख्त कानून बनाना और जागरूकता अभियान चलाना शामिल है।
हालांकि, कानूनी प्रावधानों के बावजूद, फिल्म उद्योग में कॉपीराइट उल्लंघन एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। इस समस्या के समाधान के लिए सख्त कानून प्रवर्तन, साइबर सुरक्षा उपायों की मजबूती, तथा जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, ब्लॉकचेन जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर डिजिटल सामग्री की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
संकेतशब्द: बौद्धिक संपदा, कॉपीराइट अधिनियम 1957, डिजिटल पायरेसी, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, फिल्म उद्योग, अवैध स्ट्रीमिंग, साइबर सुरक्षा, संगीत की चोरी, साहित्यिक चोरी, ब्लॉकचेन तकनीक, कानूनी प्रवर्तन, जागरूकता अभियान।